Friday, January 25, 2013

सोशल नेटवर्क से सड़क तक

संसद, संजीदा नहीं है मुझपे 
इसलिए कभी करप्शन के खिलाफ़
कभी निर्भया की आवाज़ बन 
सोशल नेटवर्क से लेकर सड़क तक फैला हूँ मैं 
मत समझना की कुछ भी नए साल में भूला हूँ मैं 
इस गणतंत्र का युवा हूँ मैं 

उस ओर ही चला हूँ मैं 

बड़ा जोर ही चला हूँ मैं 
सही फ़ैसले की ख़ातिर 
पानी की तोपों से जला हूँ मैं 
मोमबत्तियों की आग में गला हूँ मैं 
मत समझना की महज धुआं हूँ मैं 
इस गणतंत्र का युवा हूँ मैं 

कहते हो कि प्रगति का पुलिंदा हूँ मैं 

मगर तुम्हारे दोहरे चेहरे से शर्मिंदा हूँ मैं 
सोच रहा हूँ कि क्यों इस तरह तुम्हारा कारिन्दा हूँ मैं 
बहुत सुन चूका हूँ तुम्हारे भाषण 
मत समझना की बस चुनावी जुआ हूँ मैं 
इस गणतंत्र का युवा हूँ मैं 

ना हिस्सा होने देते हो 

ना हिस्सा मेरा देते हो 
हिस्से - हिस्से में बांटकर 
मुद्दे ही गायब कर देते हो 
है मुझे गुस्सा 
है मुझे अफ़सोस 
मगर निराश नहीं हूँ मैं 
मगर हताश नहीं हूँ मैं 
मत समझना कि कोई लॉलिपोप बबुआ हूँ मैं 
इस गणतंत्र का युवा हूँ मैं 

हर सदी का हथियार हूँ मैं 

बदलने को पुराना, तैयार हूँ मैं 
कब मानोगे की एक नया सरोकार हूँ मैं 
गौर से देखो मुझे, गौर से देखो! 
ना सिर्फ़ ग्रीन हूँ, ना सिर्फ़ गेरुआ हूँ मैं 
इस गणतंत्र का युवा हूँ मैं 
जय हिन्द! 


रुपेश कश्यप
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Monday, April 2, 2012

Gypsy Dil

सबसे मिलता है 


गले-गले घूमता है 


अपना सा ही कोई ढूंढता है 


हर मोड़ पे ठगा जाता है …


जाने कैसा gypsy दिल है 


के…मिलने से बाज नहीं आता है…


पीठ पीछे ठहाके हैं


पर हर हाथ से आँख मिलाता है


भटक-भटक हँसता है


रेत में निशाँ बनता है


जाने कैसा gypsy दिल  है


के… ज़ख्म अपने भूल जाता है...


ढीठ से रिश्ते पीठ किये टकराते हैं


उन्हें गर्मजोशी से सीने लगता है


प्यासे-प्यासे रिश्तों में


जेब से जोकर वो, प्याऊ बन जाता है


जाने कैसा gypsy दिल है


के…जुटते-जुटते, टूटता है, टूटते-टूटते, जुट जाता है...

Friday, December 16, 2011

Kuch aawara couplets!

१. 
ये आँख की पुतली है मेरे दोस्त 
मेरी तरह देखोगे तो चुभेगी नहीं 

२. 
वो मुझे बड़े प्यार से मिलता रहा 
और बड़ी शिद्दत से जलता रहा 
साली शोहरत भी गज़ब का घी होती है

३.
ज़्यादा से ज़्यादा क्या होगा यार
तुम मुझे मिलोगे और खुद से मुक़र जाओगे 
यही ना! 

४.
अच्छा नहीं लगता की तुम रात की तरह खामोश रहो 
और खाली बोतल दिन की तरह लबर-लबर करती रहे 

५. 
कुछ तो बात होती है शराब में 
लगता हूँ उसके आगे ख़राब मैं 

६.
मैं तुम्हें सब में ढूंढता रहा 
मगर तुम सब में थोड़े थोड़े मिले 

७.
तुम्हें बहोत संजो के रखा है
यहाँ वहां कहीं खो के रखा है 
गुस्सा जाने कितना जमा हो गया 
अब जाके उन्हें धो के रखा है 

रुपेश कश्यप 

Thursday, December 1, 2011

Uff Zindgi tum bhi na...


रोज़ तुम 


दौड़ती हो 


दौड़ते दौड़ते 


कितनी बार तुम 


गिरती  हो, उठती हो 


मगर तुम क्या खूब लड़ती हो 


तुम्हें मालूम तो होगा 


पर शायद याद नहीं 


मैंने  तुम्हे देखा है 


इस लोकल से उस लोकल में  


अक्सर तुम घबरायी रहती हो 


कभी कभी अजीब सी हरकतें करती हो 


लोग तुमपे हँस देते हैं 


पूछने पे कहते हैं 


जब से किसी शहरी ने 


एक दिन तुम्हे यूँ ही अकेला छोड़ दिया था 


तब से तुम भी उनपे हंसती हो 


उफ़ जिंदगी तुम भी ना 


थोड़ी सी घूमी हुई लगती हो...


(C) रुपेश कश्यप







Sach

सच 

Kuch socho to yaar

कुछ तो सोचो यार 

Tumhare liye

तुम्हारे लिए