Monday, April 2, 2012

Gypsy Dil

सबसे मिलता है 


गले-गले घूमता है 


अपना सा ही कोई ढूंढता है 


हर मोड़ पे ठगा जाता है …


जाने कैसा gypsy दिल है 


के…मिलने से बाज नहीं आता है…


पीठ पीछे ठहाके हैं


पर हर हाथ से आँख मिलाता है


भटक-भटक हँसता है


रेत में निशाँ बनता है


जाने कैसा gypsy दिल  है


के… ज़ख्म अपने भूल जाता है...


ढीठ से रिश्ते पीठ किये टकराते हैं


उन्हें गर्मजोशी से सीने लगता है


प्यासे-प्यासे रिश्तों में


जेब से जोकर वो, प्याऊ बन जाता है


जाने कैसा gypsy दिल है


के…जुटते-जुटते, टूटता है, टूटते-टूटते, जुट जाता है...

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