1
हर सुबह निकलता हूँ
और चुन चुन के एक एक लफ़्ज लाता हूँ
कभी किसी स्कूल जाते मासूम बच्चे की किताब से एक हर्फ़ मांगता हूँ
कभी किसी खिलखिलाए पेड़ से एक अक्षर तोड़ता हूँ
कभी नींद से अभी अभी जागी ओस की बूंदों से एक बिंदी लेता हूँ
कभी टायं टायं करते कौवे से एक कौमा उड़ाता हूँ
कभी काम पे निकले ख्वाबों से पूर्ण विराम चुराता हूँ
फिर मैं एक पूरा ही वाक्य बनाता हूँ
अचानक ही सबकुछ मिटाता हूँ,
कमाल है
मेरे स्लेट पे हर शब्द पल में मिट जाते हैं
और मैं 'ढाई आखर' पे मिट जाता हूँ
2
सच जीने की ज़िद में
हम एक कौतुहल हो गए हैं
कब्र की नींव पर नहीं,
जिंदगी की नींव पर खड़े
हम ताजमहल हो गए हैं
(C) रुपेश कश्यप
हर सुबह निकलता हूँ
और चुन चुन के एक एक लफ़्ज लाता हूँ
कभी किसी स्कूल जाते मासूम बच्चे की किताब से एक हर्फ़ मांगता हूँ
कभी किसी खिलखिलाए पेड़ से एक अक्षर तोड़ता हूँ
कभी नींद से अभी अभी जागी ओस की बूंदों से एक बिंदी लेता हूँ
कभी टायं टायं करते कौवे से एक कौमा उड़ाता हूँ
कभी काम पे निकले ख्वाबों से पूर्ण विराम चुराता हूँ
फिर मैं एक पूरा ही वाक्य बनाता हूँ
अचानक ही सबकुछ मिटाता हूँ,
कमाल है
मेरे स्लेट पे हर शब्द पल में मिट जाते हैं
और मैं 'ढाई आखर' पे मिट जाता हूँ
2
सच जीने की ज़िद में
हम एक कौतुहल हो गए हैं
कब्र की नींव पर नहीं,
जिंदगी की नींव पर खड़े
हम ताजमहल हो गए हैं
(C) रुपेश कश्यप
2 comments:
apratim..
Shukriya anonymous dear:-)
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