दुआ मांगने और दुआ करने वालों की भीड़ है, सब कुछ ना कुछ बेहतर मांग रहे हैं, बावजूद इसके अपने देश के ईश्वर और अल्लाह दोनों कहाँ खो गए हैं या बमों के दहशत से चुपचाप भूमिगत हो गए हैं जहाँ हर एक फर्लांग पे मन्दिर और मस्जिद है और सबको ईश्वर पाने की ज़िद है बावजूद इसके इस एक अरब आबादी वाले देश के ईश्वर और अल्लाह कहाँ खो गए हैं या बमों से उनके भी चिथड़े उड़ गए हैं... हालांकि ऐसा होना बिल्कुल भी नामुमकिन है मगर ख़बर आई है कि जिसने बम फोड़ा था वो भी अल्लाहका बन्दा था जो मर गए वो भी अल्लाह के बन्दे थे और जो मरने वाले हैं वो भी अल्लाह के बंदे हैं मैं दुआ मांग रहा हूँ और सोच रहा हूँ क्या मांगू ... |
1 comment:
There's nothing to ask for anymore.
It's now become a game of just survival.
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